ज़िन्दगी फिर ना मिलेगी

ए मुसाफिर रुक ज़रा
तेरी ये राह ना रुकेगी
जी ले साथ अपनो के
जिन्दगी फिर ना मिलेगी



रोटी तो कमानी ही है
तेरी भूख जो ना मिटेगी
कुछ साथ की यादें भी कमा
जिंदगी फिर ना मिलेगी



काल को कौन रोक सका
घड़ी तो अपनी चाल चलेगी
कुछ पल तो खुद के जी
जिंदगी फिर ना मिलेगी

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