एक शाम की कहानी
वो सुरज की मद्धम होती आंच सब के साथ,वो नवोदित प्रकाश कंडे की वो सुलगती सी खुशबू तेल की कड़वाहट मे घूलती मिठास माँ का वो ममतामयी स्पर्श उस नन्हे बेजुबान की तुतली जुबानी सुनो मुझसे एक शाम की कहानी वो ढलती हुई शाम, वो गोधुली बेला धुल की परतों मे छिपता वो "बाल"पन एक नटखट का वो रूदन वो क्रनदन उस "बाल " के सहमे से घर आना एक ओर माँ तो कहीँ दादी -नानी उस बढ़ते बचपन के गढ़ती जुबानी सुनो मुझसे एक शाम की कहानी फिर जो आया वो विद्या , एक आलय पल मे बीतता वो विद्यालय साल दर साल वो बनते बुनते सपने एक से दो और दो से चार का मान वो ज्ञान वो गणित,विज्ञान का सम्मान सबको सहेजे समेटे वो जीवन्त प्रस्थान उस "बाल" से नव किशोर की ज़ुबानी सुनो मुझसे एक शाम की कहानी फिर आया जो जीवन विशाल सब सीखों को यूँ ही सम्भाल फिर हर राह की वो आपा-धापी कभी आगे तो फिर पीछे की सवारी सीख चुके सब,अब अमल की तैयारी काँधे से कांधा मिला, वो दैनिक लाचारी आपस मे मिल एक होते हमराहों की ज़ुबानी सुनो मुझसे एक शाम की कहानी बीत गया सब अब आ गया "काल" जो चार से दो फिर दो से एक होते चले गये सब वो &quo