यूँ ही

उम्र से अपना हाथ खिंच कर
अपने बचपन से मिलने चला
उन नादान यादों के सहारे ही
हर कदम अपना बढ़ाते चला
भूला अपनी हर ऊधेड़बुन को
यूँ ही चार कदम को जीने चला
अपनी हर झुर्रि के तजर्बे को
किताबो  के बिच छुपाता हुआ
भुली हूइ हर नादानियो को
एक बार फिर दोहराने चला
फिर इस बार जो मुलाकात हूइ
बरसो पुराने खोये बचपने से
फिर से जीने ऊस मौज को
यूँ ही चार कदम दौड़  चला

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