तू सोचता क्या है

हाथ पे हाथ रख यूं  तू ऐसा क्या सोचता है,

खोल कर अपने हाथो को वो कर जो देखता है,

लकीरें तो हाथो मे है तो इरादें कुछ मन मे है,

चल उठ अब आगे बढ़ जैसा चाहे तू वैसा गढ़,

जा हाथों को खोल कर रुक मत कुछ सोच कर,

मंज़िलें अभी बाकी हैं मुट्ठी की की लकीरें राज़ी है,

हाथ पे हाथ रख यूं  तू ऐसा क्या सोचता है,

जो आगे बढ़ता है असल मे वही तो जीतता है।

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